विकास के लिये 100 में से सिर्फ 3 रूपये

जयपुर, 31 जुलाई। प्रदेश का विकास इतना चुनौतीपूर्ण है, इसका अन्दाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 100 रूपये में से सरकार सिर्फ 3 रूपये ही विकास पर खर्च कर सकती है, बाकी 97 प्रतिशत पैसा वेतन, पेंशन और ब्याज पर खर्च हो रहा है। यह चैंकाने वाले तथ्य मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने वित्त एवं विनियोग विधेयक पर चर्चा के जवाब में बताये। उन्होंने कहा कि ऐसे हालातों में विकास के लिए पीपीपी माॅडल जरूरी हो गया है।

श्रीमती राजे ने कहा कि आज की स्थिति में प्रदेश का आॅन टैक्स रेवेन्यू 40 हजार 655 करोड़ रूपये तथा आॅन नाॅन टैक्स रेवेन्यू 14 हजार 939 करोड़ रूपये है, इस प्रकार प्रदेश की कुल आय 55 हजार 594 करोड़ रूपये है। इसमें से वेतन पर 34 हजार 257 करोड़ रूपये (आय का 61.6 प्रतिशत), पेंशन पर 9 हजार 38 करोड़ रूपये (आय का 16.26 प्रतिशत) तथा ब्याज पर 10 हजार 470 करोड़ रूपये (आय का 18.83 प्रतिशत) खर्च होता है जो कुल आय का 97 प्रतिशत है।

श्रीमती राजे ने कहा कि प्रदेश का यह हाल गत सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन के कारण हुआ है। इसी कारण ऊर्जा क्षेत्र भी बदहाल हो गया है। हमने वर्ष 2008-09 में ऊर्जा के लिये 2 हजार 269 करोड़ रूपये का वित्तीय सहयोग लिया था, जो पिछली सरकार के कार्यकाल में बढ़ता चला गया। यह 2011-12 में 6 हजार 455 करोड़ रूपये, 2012-13 में 11 हजार 300 करोड़ रूपये तथा 2013-14 में 12 हजार 290 करोड़ रूपये अर्थात् 2008-09 के मुकाबले पांच गुना से अधिक बढ़ गया। बावजूद इसके बिजली के उत्पादन और विद्युत आपूर्ति की क्वालिटी में गिरावट हुई। तीनों डिस्काॅम्स का घाटा भी 75 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा हो गया। इस वित्तीय बदहाली के कारण राज्य सरकार को करीब 18 हजार करोड़ रूपये का कर्ज भी अपने ऊपर लेना पड़ा। ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति इतनी खराब नहीं होती तो बिजली कम्पनियों को कर्ज के रूप में दिये गये 18 हजार करोड़ रूपये राज्य में चिकित्सा, शिक्षा, सिंचाई और अन्य विकास कार्यों पर खर्च हो सकते थे।
श्रीमती राजे ने कहा कि पिछली सरकार चुनावी वर्ष में कुम्भकर्णी नींद से जागी, वित्तीय प्रबंधन का यह हाल रहा कि पहली बार उसे 14 हजार करोड़ रूपये का एडीशनल आॅथोराइजेशन लेना पड़ा। सरकार ने जब वर्ष 2013-14 का बजट प्रस्तुत किया तो समुचित वित्तीय प्रबंधन नहीं किया। उन्होंने कहा कि जब भी बजट प्रस्तुत किया जाता है तो मार्च से लेकर दूसरे मार्च तक के प्रावधान किये जाते हैं। पूर्ववर्ती सरकार के सामने ऐसी कौन सी इमरजेंसी आ गई कि उसे अगस्त के महीने में विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुलाना पड़ा और उसे एक, दो व पांच हजार नहीं, बल्कि 14 हजार करोड़ रूपये का एडीशनल आॅथोराइजेशन लेना पड़ा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि गत सरकार ने चुनावी हार को सामने देखकर वित्तीय अनुशासन को पूरी तरह दरकिनार कर दिया। सरकार ने पैसा पानी की तरह बहाया लेकिन उसे प्रोडेक्टिविटी के साथ नहीं जोड़ा। सरकार पैसे से पार्टी की छवि को सुधारने के काम में लग गई। विज्ञापन का बजट 27 करोड़ रूपये से बढ़कर 119 करोड़ रूपये तक पहुंच गया। यह भी सिर्फ सरकार का बजट था इसमें बोर्ड व कार्पोरेशन का बजट शामिल नहीं है। अगर इनके विज्ञापन बजट को जोड़ दिया जाये तो यह कई गुना ज्यादा हो जायेगा। बावजूद इसके जनता इस मायाजाल में नहीं आई।